
नीतीश कुमार के सामने चुनौती।
Explainer: यूं तो सियासत में समीकरण काफी मायने रखते हैं। लेकिन कभी-कभी जनता कुछ इस तरह से भी फैसला लेती है कि सारे समीकरण धरे के धरे रह जाते हैं। फिर भी समीकरणों को साध लेना किसी राजनीतिक दल की बड़ी सफलता मानी जाती है। बिहार में भी आजकल सियासी दल समीकरणों को साधने में जुट गए हैं। दरअसल, बिहार विधानसभा का चुनाव इस साल के अंत में होना है। राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस की अगुवाई में महागठबंधन के नेता जहां एकजुट होकर समीकरणों को साधने की कवायद में जुटे हैं वहीं एनडीए को ओर से जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी की ओर से पहले ही नीतीश कुमार को सीएम चेहरा घोषित किया जा चुका है। दिलचस्प बात ये है कि वक्फ संशोधन कानून बनने के बाद बिहार में यह पहला चुनाव होगा। अब ये देखना है कि वक्फ कानून का विरोध कर रहे एक समुदाय विशेष का वोट किसकी झोली में जाता है। नीतीश के लिए यह चुनाव कितनी बड़ी चुनौती है और महागठबंधन के लिए कितना फायदेमंद है।
बिहार में 2025 का विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार जनता दल यूनाइटेड मिलकर लड़ेंगे। दोनों दल इसका कई बार जिक्र कर चुके हैं। हलांकि नीतीश कुमार के पलटी मारने के पिछले अनुभवों के आधार पर बीजेपी थोड़ी सशंकित जरूर थी लेकिन हाल के दिनों में नीतीश कुमार ने जिस तरह का बयान दिया उससे साफ है कि वे फिलहाल पलटी नहीं मारने वाले हैं। नीतीश कुमार ने कहा कि दो बार गलती हो गई अब हम गलती नहीं करेंगे। इससे साफ है कि विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ जानेवाले नहीं हैं।
महागठबंधन की अगुवाई तेजस्वी कर सकते हैं। महागठबंधन की बैठक में उनके नाम पर मुहर लगने के पूरे आसार हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आरजेडी ने तेजस्वी को सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट किया था। आरजेडी और कांग्रेस ने साथ मिलकर यह चुनाव लड़ा था लेकिन बहुमत से चूक गए थे। 2020 में विधानसभा की कुल 243 सीटों के लिए हुए चुनाव में एनडीए को कुल 125 सीटें हासिल हुई थी जबकि महागठबंधन को 110 सीटों से संतोष करना पड़ा था।
नीतीश कुमार के सामने चुनौती।
नीतीश के सामने चुनौतियां
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 के पारित होने के बाद बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JD(U) के लिए कई चुनौतियां सामने आ सकती हैं। नीतीश कुमार के इस विधेयक का समर्थन करने के फैसले ने उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि और मुस्लिम वोट बैंक पर असर डाला है, जो बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण है।
1. मुस्लिम वोट बैंक का नुकसान
- बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 17% (2011 की जनगणना के अनुसार) है। खासतौर से सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, कटिहार, अररिया) में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाती है। नीतीश कुमार ने 2014 और 2015 के चुनावों में महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) के साथ गठबंधन के दौरान मुस्लिम वोटों का महत्वपूर्ण हिस्सा हासिल किया था। 2015 में महागठबंधन को 80% मुस्लिम वोट मिले थे।
- वक्फ विधेयक के समर्थन का असर ये है कि पांच प्रमुख मुस्लिम नेताओं (नदीम अख्तर, राजू नय्यर, तबरेज सिद्दीकी, मोहम्मद शाहनवाज मलिक, मोहम्मद कासिम अंसारी) ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। यह पार्टी के भीतर अल्पसंख्यक नेतृत्व के असंतोष को दर्शाता है।
- 2020 के विधानसभा चुनाव में JD(U) ने एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था औरकेवल 5% मुस्लिम वोट मिले थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 12% तक पहुंचा, लेकिन वक्फ विधेयक के बाद मुस्लिम मतदाताओं का मोह भंग होने की संभावना है।
2. धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान
- नीतीश कुमार ने लंबे समय तक अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखा, जिसके कारण वे गैर-यादव OBC, EBC, और कुछ हद तक मुस्लिम वोटर्स को आकर्षित करते रहे। हालांकि, उनकी बार-बार गठबंधन बदलने (NDA से महागठबंधन और फिर NDA) की वजह से उनकी विश्वसनीयता पहले ही सवालों के घेरे में थी।
- वक्फ विधेयक का समर्थन करने से नीतीश की धर्मनिरपेक्ष छवि को और ठेस पहुंची है। ऐसा माना जा रहा है कि उनकी धर्मनिरपेक्षता पर भरोसा टूट गया। विपक्ष, खासकर RJD और जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर, इसे नीतीश के “मुसलमानों के साथ विश्वासघात” के रूप में प्रचारित कर रहे हैं।
- धर्मनिरपेक्ष छवि के कमजोर होने से नीतीश का कोर वोटर आधार (EBC और गैर-यादव OBC) भी प्रभावित हो सकता है, जो उनकी विकास और सुशासन की छवि के साथ-साथ उनकी तटस्थता पर निर्भर था। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में नुकसानदेह हो सकता है जहां मुस्लिम और OBC मतदाता मिलकर निर्णायक हैं।
3. पार्टी के भीतर असंतोष और नेतृत्व संकट
- JD(U) एक लंबे समय से नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक व्यक्ति-केंद्रित पार्टी रही है। हालांकि, उनकी उम्र (74 वर्ष) और स्वास्थ्य संबंधी अटकलों ने नेतृत्व के भविष्य पर सवाल उठाए हैं।
- वक्फ विधेयक के चलते मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे से पार्टी के अल्पसंख्यक चेहरों की कमी हुई है। 2020 में JD(U) ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन कोई नहीं जीता, जो पहले ही उनकी कमजोर स्थिति को दर्शाता है। नीतीश के बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाने की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन उनकी स्वीकार्यता और अनुभव की कमी पार्टी के लिए जोखिम पैदा कर सकती है।
- कुछ JD(U) नेता, जैसे संजय झा और ललन सिंह, BJP के करीब माने जाते हैं, जिससे पार्टी में विभाजन की आशंका है।
- आंतरिक असंतोष और नेतृत्व संकट JD(U) की चुनावी तैयारियों को कमजोर कर सकता है। अगर नीतीश के बाद कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं उभरता, तो पार्टी का वोट शेयर और संगठनात्मक ढांचा प्रभावित हो सकता है।
4. BJP के साथ तनावपूर्ण गठबंधन
- नीतीश कुमार और BJP के बीच गठबंधन अक्सर तनावपूर्ण रहा है। 2020 में, BJP ने 74 सीटें जीतीं, जबकि JD(U) को केवल 43 मिलीं, फिर भी नीतीश मुख्यमंत्री बने। वक्फ विधेयक का समर्थन करने से नीतीश को BJP के प्रति और अधिक निर्भरता स्वीकार करनी पड़ी, जिससे उनकी स्वायत्तता कम हुई है। BJP ने हाल के कैबिनेट विस्तार में केवल अपने नेताओं को शामिल किया, जिसे विपक्ष ने JD(U) के “हाईजैक” होने के रूप में प्रचारित किया।
- चुनौती: अगर BJP नीतीश को दरकिनार कर अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार को आगे बढ़ाती है, तो JD(U) का वोट शेयर और संगठन प्रभावित हो सकता है। दूसरी ओर, अगर नीतीश NDA छोड़कर महागठबंधन में जाते हैं, तो उनकी बार-बार “पलटी” मारने की छवि और खराब होगी।
5. विपक्ष और नए राजनीतिक खिलाड़ियों का दबाव
बिहार की राजनीति में RJD और कांग्रेस के अलावा, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) जैसे नए खिलाड़ी उभर रहे हैं। प्रशांत किशोर ने नीतीश की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर सवाल उठाए हैं और वक्फ विधेयक को उनके “BJP के सामने आत्मसमर्पण” के रूप में चित्रित किया है। उनकी जन सुराज पार्टी मुस्लिम और EBC मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश की विश्वसनीयता पर हमला बोला है, और वक्फ विधेयक को मुस्लिम विरोधी करार देकर अल्पसंख्यक वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।
विपक्ष और नए खिलाड़ी नीतीश की कमजोरियों (वक्फ विधेयक समर्थन, बार-बार गठबंधन बदलना, स्वास्थ्य अटकलें) को भुनाने की कोशिश करेंगे, जिससे JD(U) का वोट शेयर और सीटें कम हो सकती हैं।
आरजेडी के लिए कितना फायदेमंद
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए वक्फ पर जेडीयू के समर्थन का मुद्दा राजनीतिक रूप से काफी फायदेमंद हो सकता है। मुस्लिम मतदाता बिहार की 17% आबादी का हिस्सा हैं और 47 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण
- वक्फ विधेयक को विपक्ष और कई मुस्लिम संगठनों ने “मुस्लिम विरोधी” और धार्मिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप के रूप में चित्रित किया है। RJD ने इस मुद्दे को भुनाने के लिए आक्रामक रुख अपनाया है, जिसमें विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना और इसे “कूड़ेदान में फेंकने” का वादा शामिल है।
- बिहार में मुस्लिम मतदाता परंपरागत रूप से RJD के समर्थक रहे हैं। मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण यहां मजबूत रहा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन (RJD-JD(U)-कांग्रेस) को 80% मुस्लिम वोट मिले थे।
- वक्फ विधेयक के खिलाफ RJD की मुखरता, खासतौर से तेजस्वी यादव का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेना, मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने में मदद कर सकता है।
- नीतीश कुमार के JD(U) और चिराग पासवान के LJP (RV) के विधेयक समर्थन से मुस्लिम मतदाताओं में असंतोष बढ़ा है, जिसका सीधा लाभ RJD को मिल सकता है। JD(U) के पांच मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे और LJP के एकमात्र प्रमुख मुस्लिम नेता मेहबूब अली कैसर का RJD में शामिल होना इसकी पुष्टि करता है।
- सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, कटिहार, अररिया) और अन्य मुस्लिम-प्रधान सीटों पर RJD को मजबूती मिल सकती है। 2020 में RJD ने 75 सीटें जीती थीं, और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण उनकी सीटों को 80-90 तक ले जा सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां 2020 में हार का अंतर कम था।
- RJD महागठबंधन का नेतृत्व करता है, जिसमें कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं। वक्फ विधेयक ने विपक्षी एकता को मजबूत किया है, क्योंकि सभी प्रमुख विपक्षी दलों (कांग्रेस, DMK, AAP, TMC) ने संसद में इसका विरोध किया।
