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15 अगस्त 1950 की वह शाम, जब भारत अपनी आजादी की तीसरी वर्षगांठ का जश्न मना रहा था, प्रकृति ने एक ऐसी तबाही मचाई, जिसने असम और तिब्बत की पहाड़ियों को हिलाकर रख दिया। भारत के स्वतंत्रता दिवस के दिन आए इस भूकंप ने उत्सव के माहौल को मातम में बदल दिया।

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असम-तिब्बत भूकंप, जिसे 20वीं सदी का छठा सबसे ताकतवर भूकंप माना जाता है, ने इतिहास में एक ऐसी छाप छोड़ी कि इसे आज भी भूकंप से जुड़ी स्टडी में शामिल किया जाता है। इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 8.7 थी, और इसका केंद्र असम की मिश्मी पहाड़ियों में, भारत-तिब्बत सीमा के पास मैकमोहन रेखा के दक्षिण में स्थित था।

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यह उस समय तक का सबसे शक्तिशाली दर्ज किया गया भूकंप था। भूकंप ने भारत के असम और तिब्बत में भारी तबाही मचाई। अबोर पहाड़ियों में भूस्खलन के कारण लगभग 70 गांव पूरी तरह बर्बाद हो गए, और ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां प्रभावित हुईं।

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आधिकारिक तौर पर इस भूकंप में लगभग 4800 लोगों की मृत्यु दर्ज की गई, जिसमें असम में 1500 और तिब्बत में 3300 मौतें शामिल थीं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने मृतकों की संख्या 20,000 से 30,000 तक होने का अनुमान लगाया, हालांकि ये आंकड़े सरकार द्वारा पुष्ट नहीं किए गए।

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भूकंप ने नदियों, पहाड़ों और जंगलों के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया। भूस्खलन से नदियों में रेत, मिट्टी और मलबा जमा हो गया, जिसके कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई। यह भूकंप 1897 के असम भूकंप से भी अधिक विनाशकारी था, क्योंकि इसने घरों, इमारतों और बुनियादी ढांचों को जमींदोज कर दिया।

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यह भूकंप हिमालय क्षेत्र में भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव के कारण हुआ, जो इस क्षेत्र को भूकंपीय दृष्टि से अत्यधिक जोखिम भरा बनाता है। भूकंप के समय पूरे क्षेत्र में जोरदार आवाजें सुनी गई थीं जिन्होंने माहौल को और भी ज्यादा दहशत भरा बना दिया था।
